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उ॒त त्या मे॑ य॒शसा॑ श्वेत॒नायै॒ व्यन्ता॒ पान्तौ॑शि॒जो हु॒वध्यै॑। प्र वो॒ नपा॑तम॒पां कृ॑णुध्वं॒ प्र मा॒तरा॑ रास्पि॒नस्या॒योः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta tyā me yaśasā śvetanāyai vyantā pāntauśijo huvadhyai | pra vo napātam apāṁ kṛṇudhvam pra mātarā rāspinasyāyoḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। त्या। मे॒। य॒शसा॑। श्वे॒त॒नायै॑। व्यन्ता॑। पान्ता॑। औ॒शि॒जः॒। हु॒वध्यै॑। प्र। वः॒। नपा॑तम्। अ॒पाम्। कृ॒णु॒ध्व॒म्। प्र। मा॒तरा॑। रा॒स्पि॒नस्य॑। आ॒योः ॥ १.१२२.४

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:122» मन्त्र:4 | अष्टक:2» अध्याय:1» वर्ग:1» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:18» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (मे) मेरे (यशसा) उत्तम यश से (श्वेतनायै) प्रकाश के लिये (व्यन्ता) अनेक प्रकार के बल से युक्त (पान्ता) रक्षा करनेवाले (त्या) वे पूर्वोक्त पढ़ाने और उपदेश करनेहारे (हुवध्यै) हम लोगों के ग्रहण करने को (मातरा) मान करनेहारे (रास्पिनस्य) ग्रहण करने योग्य (आयोः) जीवन अर्थात् आयुर्दा के बढ़ाने को (प्र) प्रवृत्त होते हैं तथा जैसे तुम लोग (अपाम्) जलों के (नपातम्) विनाशरहित मार्ग को वा जलों के न गिरने को (प्र, कृणुध्वम्) सिद्ध करो वैसे (उत) निश्चय से (औशिजः) कामना करते हुए का सन्तान मैं (वः) तुम लोगों की आयुर्दा को निरन्तर बढ़ाऊँ ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे सुन्दर शिक्षा से हम लोगों की आयुर्दा को तुम बढ़ाओ, वैसे हम भी तुम्हारी आयुर्दा की उन्नति किया करें ॥ ४ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे मनुष्या यथा मे यशसा श्वेतनायै व्यन्ता पान्ता त्या हुवध्यै मातरा रास्पिनस्यायोर्वर्द्धनाय प्रवर्तेते यथापां नपातं यूयं प्रकृणुध्वं तथोतौशिजोऽहं व आयुः सततं प्रवर्द्धयेयम् ॥ ४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (त्या) तौ (मे) मम (यशसा) सत्कीर्त्त्या (श्वेतनायै) प्रकाशाय (व्यन्ता) विविधबलोपेतौ (पान्ता) रक्षकौ (औशिजः) कामयमानपुत्रः (हुवध्यै) आदातुम् (प्रः) (वः) युष्माकम् (नपातम्) पातरहितम् (अपाम्) जलानाम् (कृणुध्वम्) कुरुध्वम् (प्र) (मातरा) मानकारकौ (रास्पिनस्य) आदातुमर्हस्य (आयोः) जीवनस्य ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यथा सुशिक्षयाऽस्माकमायुर्यूयं वर्द्धयत तथा वयमपि युष्माकं जीवनमुन्नयेम ॥ ४ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसे चांगल्या शिक्षणाने आमचे आयुष्य तुम्ही वाढविता तसे आम्हीही तुमच्या आयुष्याचे उन्नयन करावे. ॥ ४ ॥